भारतीय दर्शन अपने व्यापक और गहन दृष्टिकोण के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यह दर्शन चार प्रमुख कालों में विभाजित किया जा सकता है:
- वैदिक काल (The Vedic Period)
- महाकाव्य काल (The Epic Period)
- सूत्र काल (The Sutra Period)
- वर्तमान और समसामयिक काल (The Modern and Contemporary Period)
1. वैदिक काल
भारतीय दर्शन का प्रारंभिक और प्राचीनतम चरण वैदिक काल है। इस काल में वेद और उपनिषद जैसे महान ग्रंथों की रचना हुई, जो भारतीय दर्शन की आधारशिला हैं।
वेदों का महत्व:
- वेद, जो प्राचीनतम मनुष्य के दार्शनिक विचारों का संकलन हैं, ईश्वर की वाणी माने जाते हैं।
- इन्हें परम सत्य मानते हुए आस्तिक दर्शनों ने प्रमाण रूप में स्वीकार किया है।
- “वेद” शब्द का अर्थ है ज्ञान, और इनमें निहित ज्ञान को दर्शन का आधार माना गया है।
चार वेद:
- ऋग्वेद: देवताओं की स्तुति हेतु गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह।
- यजुर्वेद: यज्ञ की विधियों का वर्णन।
- सामवेद: संगीत प्रधान।
- अथर्ववेद: मंत्र, तंत्र, और जादू-टोना से सम्बंधित।
प्रत्येक वेद के तीन मुख्य अंग होते हैं: मंत्र, ब्राह्मण और उपनिषद्। ‘संहिता’ शब्द का प्रयोग मंत्रों के संग्रह के लिए किया जाता है। ब्राह्मणों में कर्मकाण्ड की विवेचना की जाती है, जबकि उपनिषद् में गूढ़ दार्शनिक विचारों की प्रस्तुति होती है। चारों वेदों में ऋग्वेद को प्रमुख और मौलिक माना जाता है। वैदिक काल के लोग देवताओं की विविध कल्पनाओं में विश्वास रखते थे, जैसे अग्नि, सूर्य, उषा, पृथ्वी, मरुत्, वायु, इन्द्र, वरुण आदि।
वेदों के अंग:
- मंत्र: संकलित वेद मंत्र।
- ब्राह्मण: कर्मकांड और यज्ञों की मीमांसा।
- उपनिषद: दार्शनिक चिंतन।
उपनिषद का महत्व:
- उपनिषद शब्द का अर्थ है “निकट श्रद्धायुक्त बैठना”।
- गुरु-शिष्य संवाद के माध्यम से रहस्यमय ज्ञान का संचार।
- “अहं ब्रह्मास्मि” और “तत्त्वमसि” जैसे वाक्य दार्शनिक विचारों के शिखर हैं।
- इन्हें वेदांत कहा जाता है, क्योंकि यह वेदों का सार और अंतिम भाग है।
- उपनिषदों का उद्देश्य आत्मा और परमात्मा का ज्ञान प्रदान कर मोक्ष की प्राप्ति है।
उपनिषदों की संख्या अनेक है, जिनमें दस उपनिषदों को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। इन उपनिषदों में धार्मिक, वैज्ञानिक और दार्शनिक विचारों का समावेश होता है। उपनिषद् वह शास्त्र है, जिसके अध्ययन से मानव जन्म और मरण के बन्धनों से मुक्ति प्राप्त करता है। ये शास्त्र संकट के समय में मानव को सही मार्ग पर चलने की दिशा दिखाते हैं। इसी कारण उपनिषदों को विश्व-साहित्य के अनमोल रत्न के रूप में स्वीकार किया गया है।
2. महाकाव्य काल
इस काल में रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों की रचना हुई है। साथ ही, बौद्ध और जैन धर्मों का उदय भी इसी काल में हुआ। इन ग्रंथों और धर्मों ने भारतीय दर्शन को व्यावहारिकता और सामाजिक चेतना से समृद्ध किया।
3. सूत्र काल
सूत्र काल में भारतीय दर्शन ने महत्वपूर्ण प्रगति की। इस काल में षड् दर्शन (छह दर्शनों) का निर्माण हुआ:
- न्याय
- वैशेषिक
- सांख्य
- योग
- मीमांसा
- वेदांत
इस काल की विशेषताएँ:
- इन दर्शनों में जीवन, ईश्वर, आत्मा और ब्रह्मांड से संबंधित गहन विचारों का विकास हुआ।
- सूत्र साहित्य ने जटिल दार्शनिक विचारों को संक्षेप और सरल रूप में प्रस्तुत किया।
- यह काल भारतीय दर्शन का स्वर्ण युग कहा जाता है।
4. वर्तमान और समसामयिक काल
यह काल राजा राम मोहन राय के समय से शुरू होता है और आधुनिक युग तक चलता है। इस काल के प्रमुख दार्शनिक हैं:
- महात्मा गांधी
- रवींद्रनाथ ठाकुर
- डॉ. राधाकृष्णन
- स्वामी विवेकानंद
- श्री अरबिंदो
- इकबाल
इस काल की विशेषताएँ:
- आधुनिक दार्शनिकों ने वैदिक और उपनिषदों की परंपरा को पुनर्जीवित किया।
- उन्होंने भारतीय दर्शन को समसामयिक जीवन के संदर्भ में प्रस्तुत किया।
निष्कर्ष
भारतीय दर्शन का यह विकासक्रम इसके गहन और व्यापक स्वरूप को दर्शाता है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक, भारतीय दर्शन ने आत्मा, परमात्मा, और ब्रह्मांड के संबंध में अनेक दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं। यह दर्शन न केवल आध्यात्मिकता में रुचि रखता है, बल्कि मानव जीवन के हर पहलू को गहराई से समझने का प्रयास करता है।