भारतीय दर्शन का विकास (Evolution of Indian Philosophy)

Evolution of Indian Philosophy

भारतीय दर्शन का विकास (Evolution of Indian Philosophy)

भारतीय दर्शन का विकास अत्यंत विशिष्ट और समृद्ध है, जो इसे यूरोपीय दर्शन से अलग बनाता है। भारतीय दर्शन में विभिन्न विचारधाराएँ एक साथ अस्तित्व में रही हैं और समय के साथ विकसित हुई हैं। इसके विपरीत, यूरोपीय दर्शन में एक विचारधारा दूसरी विचारधारा को प्रतिस्थापित करती रही है।

भारतीय दर्शन की विशेषताएँ:

  • सह-अस्तित्व और सहिष्णुता:
    भारतीय दर्शन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि सभी दर्शन, चाहे वे आस्तिक हों या नास्तिक, एक-दूसरे के साथ सह-अस्तित्व में रहे हैं। वेदों के आधार पर बने षड्दर्शन (न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, और वेदान्त) ने आपस में सहयोग किया और अपनी स्वतंत्र पहचान भी बनाए रखी।

  • सूत्र-साहित्य का विकास:
    भारतीय दर्शन का प्रारंभिक विकास “सूत्र-साहित्य” के रूप में हुआ। सूत्र संक्षिप्त, गूढ़, और सारगर्भित होते हैं। जैसे:

    • न्याय-सूत्र: गौतम द्वारा
    • वैशेषिक-सूत्र: कणाद द्वारा
    • योग-सूत्र: पतंजलि द्वारा
    • मीमांसा-सूत्र: जैमिनि द्वारा
    • वेदान्त-सूत्र: बादरायण द्वारा
  • व्याख्यात्मक परंपरा:
    सूत्रों की जटिलता के कारण, टीकाओं और भाष्यों की परंपरा विकसित हुई। उदाहरण के लिए:

    • न्याय-सूत्र पर वात्स्यायन की टीका
    • योग-सूत्र पर व्यास का भाष्य
    • वेदान्त-सूत्र पर शंकराचार्य का भाष्य
  • विचारों की स्थिरता:
    भारतीय दर्शन में विचारधाराएँ शताब्दियों तक जीवित रहीं, क्योंकि ये दर्शन जीवन का अंग बने रहे। यह विशिष्टता इसे यूरोपीय दर्शन से अलग करती है, जहाँ एक विचारधारा दूसरी को प्रतिस्थापित कर देती है।

नास्तिक दर्शनों का विकास:

नास्तिक दर्शनों (जैन, बौद्ध, चार्वाक) का विकास सूत्र-साहित्य के माध्यम से नहीं हुआ, बल्कि ये स्वतंत्र विचारधाराओं के रूप में उभरे। इनमें:

  • चार्वाक दर्शन पूर्णतः भौतिकवादी और प्रत्यक्षवादी है।
  • जैन और बौद्ध दर्शन ने अपने ग्रंथों और व्याख्याओं के माध्यम से विकास किया।

भारतीय और यूरोपीय दर्शन का अंतर:​

  • भारतीय दर्शन ने समन्वय पर बल दिया है, जहाँ प्रत्येक विचारधारा को साथ बनाए रखा गया।
  • यूरोपीय दर्शन आलोचना और प्रतिस्थापन पर आधारित रहा है। उदाहरण के लिए, स्पिनोजा ने देकार्त के दर्शन को सुधारने का प्रयास किया, जबकि बर्कले ने लॉक के विचारों को चुनौती दी।

भारतीय दर्शन में यह स्थायित्व और सहिष्णुता इसे अद्वितीय बनाता है। इसका विकास, जीवन के साथ गहराई से जुड़ा हुआ, एक ऐसा दर्शन प्रस्तुत करता है जो कालातीत और प्रासंगिक दोनों है।

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