भारत के विभिन्न दर्शन में जगत की सत्यता

भारत के विभिन्न दर्शन में जगत की सत्यता

भारत के विभिन्न दर्शन में जगत की सत्यता

भारतीय दर्शन में विश्व के अस्तित्व और उसकी सत्यता को लेकर विभिन्न विचार पाए जाते हैं। शंकर और योगाचार सम्प्रदाय को छोड़कर, अन्य अधिकांश भारतीय दार्शनिक जगत को सत्य मानते हैं।

चार्वाक दर्शन:

चार्वाक दर्शन के अनुसार, संसार का अस्तित्व भौतिक तत्वों जैसे पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि के परमाणुओं से उत्पन्न हुआ है। इसके अनुसार, ईश्वर का अस्तित्व नहीं है और यह जगत केवल भूतों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि) के आकस्मिक संयोग से उत्पन्न हुआ है। चार्वाक के अनुसार, इस विश्व में कोई आध्यात्मिक या ईश्वरीय कारण नहीं है, बल्कि यह एक प्राकृतिक घटना है।

जैन दर्शन:

जैन दर्शन में भी जगत को सत्य माना जाता है, लेकिन इसके अनुसार विश्व का निर्माण परमाणुओं (पुद्गल) से हुआ है। यह परमाणु दिक् (स्थान) और काल में स्थित होते हैं, और इनकी व्यवस्था के अनुसार विश्व का विकास होता है। यहाँ भी ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया जाता है, और सारी सृष्टि प्राकृतिक नियमों से संचालित होती है।

बौद्ध दर्शन:

बौद्ध दर्शन में भी जगत को सत्य और प्रत्यक्ष माना गया है। बौद्ध दर्शन के विभिन्न सम्प्रदाय, जैसे महायान और हीनयान, इस बात पर जोर देते हैं कि संसार में सब कुछ निरंतर परिवर्तनशील है, और यह अस्तित्व सत्य है, लेकिन यह सब कुछ निर्वाण (मुक्ति) की ओर बढ़ता है।

न्याय-वैशेषिक दर्शन:

न्याय और वैशेषिक दर्शन के अनुसार, जगत सत्य है, और यह दिक् और काल में स्थित है। इनका मानना है कि सृष्टि का निर्माण परमाणुओं के संयोजन से हुआ है, और इसी क्रम में नैतिक और भौतिक व्यवस्थाएँ एक साथ कार्य करती हैं।

सांख्य-योग दर्शन:

सांख्य और योग दर्शन के अनुसार भी जगत सत्य है, और इसका निर्माण त्रिगुणात्मक प्रकृति (सत्त्व, रजस, तमस) के विकास से हुआ है। प्रकृति के भिन्न-भिन्न गुणों के आधार पर सृष्टि का क्रम और विकास होता है, और इस सृष्टि का सत्यता से संबंध होता है।

मीमांसा दर्शन:

मीमांसा दर्शन में भी संसार को सत्य माना गया है। इसके अनुसार, संसार का निर्माण परमाणुओं और कर्म के नियमों से होता है। यहाँ तक कि संसार में होने वाली हर घटना और प्रत्येक कर्म का परिणाम निश्चित और न्यायसंगत होता है।

रामानुज दर्शन:

रामानुज के अनुसार भी, जगत सत्य है। उनका विश्वास है कि यह त्रिगुणमयी प्रकृति का परिणाम है, और ईश्वर के साथ इसका गहरा संबंध है। उनके अनुसार, भगवान और संसार दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, और यह दोनों सत्य हैं।

शंकर का अद्वैत वेदांत:

शंकर के अद्वैत वेदांत में जगत की सत्यता पर एक विशेष दृष्टिकोण है। शंकर के अनुसार, केवल ब्रह्म ही परम सत्य है, और समस्त सृष्टि उसका मिथ्या रूप है। शंकर के दर्शन में, जगत को व्यावहारिक दृष्टिकोण से सत्य माना गया है, परंतु पारमार्थिक (अद्वैत) दृष्टिकोण से यह असत्य है। शंकर ने इस दुनिया को भ्रमस्वप्न, और प्रातिभासिक सत्ता की तरह माना है। जब अज्ञान का पर्दा हटता है, तो यह संसार असत्य प्रतीत होता है, क्योंकि ब्रह्म के सत्य के प्रकाश में संसार का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।

योगाचार सम्प्रदाय (बौद्ध):

योगाचार सम्प्रदाय में विश्व को विज्ञानमय कहा गया है। इसके अनुसार, विश्व का अस्तित्व केवल अनुभवकर्ता के मन के माध्यम से ही होता है। इसका अस्तित्व तब तक है, जब तक इसकी अनुभूति होती है। इस दृष्टिकोण के अनुसार, जगत का अस्तित्व अनुभवकर्ता की मानसिक स्थिति से जुड़ा हुआ है और इससे परे कोई वस्तु या अस्तित्व नहीं है।

निष्कर्ष:

भारतीय दर्शन में जगत की सत्यता पर विभिन्न दृष्टिकोण हैं। अधिकांश दर्शनों में संसार को सत्य माना गया है, चाहे वह भौतिक तत्वों के संयोजन से बना हो, प्रकृति के विकास से उत्पन्न हुआ हो, या फिर ईश्वर के सृजन से। हालांकि, शंकर के अद्वैत वेदांत में, जहाँ ब्रह्म को ही परम सत्य माना गया है, वहाँ जगत को केवल व्यावहारिक और भ्रमपूर्ण सत्य माना गया है। इस प्रकार, भारतीय दर्शन में सत्य की व्याख्या विभिन्न दृष्टिकोणों से की गई है, और यह विचारशीलता और विवेचनात्मक दृष्टिकोण को प्रकट करता है।

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